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Friday, September 3, 2010

वर्ष 1994 की मिस अर्जेंटिना सोलांगे मैग्नैनो ने अपने शरीर को और खूबसूरत बनाने की चाह में अपनी जान गंवा दी। मैग्नैनो अपनी शरीर की खूबसूरती बरकरार रखने के लिए कसरत और खान-पान तक ही नहीं रुकीं और खूबसूरती का यही जनून उनकी मौत का कारण बना। मैग्नैनो अपनी सफल मॉडलिंग एजेन्सी चलाती थी। कई बार प्लास्टिक सर्जरी द्वारा अपनी खूबसूरती में इजाफा करने वाली मैग्नैनो को 38 साल की उम्र में यह एहसास होने लगा था कि उनकी सुन्दरता कुछ धूमिल सी पड़ गई है, इसलिए अपने कूल्हे के आकार को ठीक कराने के लिए उन्होंने कॉस्मेटिक सर्जरी कराई लेकिन बदकिस्मती से कुछ यूं हुआ कि इस सर्जरी ने उनकी जान ले ली। मैग्नैनो के बारे में उनके एक मित्र का कहना है, “कि वह एक ऐसी स्त्री थी जो कामयाब थी, खूबसूरत थी, जिसके पास दुनिया का हर सुख था लेकिन अत्यधिक खूबसूरती की दीवानगी ने मैग्नैनो की जीवन लीला समाप्त कर दी”। मैग्नैनो की मौत आज बहस का विषय बन चुका है। इस मुद्दे पर बहस इसलिए भी है क्योंकि मैग्नैनो की मौत ने प्लास्टिक सर्जरी के बडेी उद्योग पर सवालिया निशान लगा दिया है। इस उद्योग के विस्तार का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि केवल अर्जेंटिना में ही हर तीसवीं महिला ने शरीर के किसी न किसी हिस्से की कास्मेटिक सर्जरी जरूर कराई है। आने वाले कुछ समय में यदि यह संख्या दसवीं तक पहुंच जाए तो यह कोई ताज्जुब की बात नहीं होनी चाहिए। अर्जेंटिना में इस सर्जरी का खर्चा दूसरे देशों के अपेक्षा कम है। यह व्यवसाय यहां खूब फल-फूल भी रहा है और इस व्यवसाय के जरिए पैसा भी खूब आ रहा है। आकड़ों की माने तो 2010 तक यानि आने वाले साल में अर्जेंटिना में यह उद्योग 100 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा। भारत में भी खूबसूरती की ये चाहत दिनों-दिन बढ़ रही है, चाहे बात छोटे पर्दे की हो अथवा बड़े पर्दे की। पर्दे पर दिखने वाली अभिनेत्रियों की छवियां आम युवतियों के हृदय में सपने पैदा करती हैं। सूचना के इस युग में महिलाएं इस बात से भली-भांति वाकिफ हैं कि बॉलीवुडिया नायिकाओं की खूबसूरती दैविक नहीं होती, इन्हें कृत्रिम तरीके से हासिल किया गया है मगर फिर भी आधुनिक समाज में महिलाएं सुंदरता के लिए कुछ भी कर गुजरने से गुरेज नहीं करती। सुन्दरता के सपने बेचने वाले उद्योगों और कम्पनियों ने महंगे कॉस्मेटिक्स प्लास्टिक सर्जरी और ब्यूटी पार्लर के जरिए महानगरीय महिलाओ में खूबसूरत बनने की होड़ मचा रखी है। काले को गोरा और बूढ़े को जवान बनाने का दावा करने वाली तमाम क्रीम बाजार में उपलब्ध है। दुनिया भर में सौन्दर्य प्रसाधनों का बाजार 20 अरब डालर से ज्यादा है। ‘फलां क्रीम 15 दिन में गोरा न बनाये तो पैसे वापस’, जाहिर है, दावे बहुत ऊंचे हैं इसीलिए मीडिया के जरिए सुन्दरता के ऐसे मानक तैयार किए जाते हैं जो आम महिलाओं के लिए शायद सम्भव न हों। महिलाओं की सुन्दरता का एक अंतर्राष्ट्रीय मानक बार्बी डॉल को ही लीजिए बार्बी गुड़िया के ढांचे के लिए शोधकर्ताओं ने उसके शरीर के अनुपात में कम्प्यूटर से एक महिला का माडल तैयार किया और खूबसूरती के इस मापदंड में महिला की कमर को इतना कमजोर रखा गया कि वह अपने उपरी हिस्से का बोझ नहीं उठा सकेगी। फिर भी बार्बी डॉल की शारीरिक बनावट को मीडिया ने आदर्श का रूप दे डाला। बावजूद इसके महिलाएं सौन्दर्य की मृगतृष्णा के पीछे निरन्तर भागती आईं हैं। इनमें भारतीय महिलाएं भी शामिल हैं। एक शोध के अनुसार हर चार में से तीन महिलाएं स्वयं की खूबसूरती को लेकर चिंतित रहती हैं। महिलाएं अपनी शारीरिक बनावट और खूबसूरती की तुलना फिल्मी हीरोइनों से करती हैं और उनके बनिस्बत खुद को कम खूबसूरत मानती हैं, यही कारण है कि वे सौन्दर्य उद्योगों का सहारा लेने के लिए विवश हो जाती हैं। महिलाओं के इसी असुरक्षा के भाव के चलते सौन्दर्य उद्योगों अपनी साख बनाए रखने में कामयाब है। सौन्दर्य प्रसाधन बनाने वाले और कॉस्मेटिक उद्योग को मंदी का यह दौर छू तक नहीं पाया है। भारत में भी ये उद्योग पूरी तरह अपना पांव पसार चुका है। कुछ वर्षों से वजन कम करने का दावा करने वाली कम्पनियां जमकर मुनाफा कमा रही है महिलाएं अपने स्वास्थ्य और आत्मसम्मान के साथ समझौते के रूप में जमकर मुनाफा कमा रही है। महिलाओं अपने आत्मसम्मान के साथ समझौते के रुप में खूबसूरती की कीमत अदा करनी पड़ती हैं महिलाओं की चिंता का विषय उनका बढ़ता वजन भी है वे छरहरी काया के पीछे पूरी सिद्दत से हर सम्भव कोशिश करती हैं। मिस अर्जेंटिना सोलांगे मैग्नैनो की मौत ने सुन्दरता उद्योग का निर्मम और भयावह चेहरा फिर से उजागर किया है। यह उन सभी महिलाओ के लिए चेतावनी स्वरुप है जो खूबसूरती की चाह में सौन्दर्य और कास्मेटिक सर्जरी उद्योग को अपने शरीर के साथ खिलवाड़ करने की इजाजत दे रही हैं। यह सिलसिला यूं ही जारी रहा तो भविष्य में सौंदर्य उद्योग जगत का और भी वीभत्स रूप हमारे सामने होगा।

Saturday, February 27, 2010

अहो भाग्य!

अहो भाग्य!
आंखों में आंसुओं का सैलाब है
सीने में मौजूद हैं बेहिसाब दर्द
कैसे करूं मैं अपने गम को बयां
लोग रोने भी नहीं देते
कहते हैं तुम्हारा भाग्य अच्छा था
जब अंतिम सांस ली तुम्हारे पिता ने
तो तुम उनके साथ थी
तुम उनके बहुत पास थी
मगर मन में
कुछ न कर पाने की कसक लिए हुए
अपने पिता को तड़पते हुए देखना
क्या मेरा अहो भाग्य था!

मेरे पिता को समर्पितः-

कैसे बचायें हम खुद को बिखर जाने से।
अब तो डर सा लगता है अपने आशियाने से
छोड़ गये हैं वो उदास हर मौसम को।
हम तो हंस देते थे कल तक जिनके मुस्कराने से।
न जाने कब तक पास रहेंगी ये तन्हाइंयाएक
जिन्दगी का साथ छुट जाने स
शायद महफिल कभी रोशन न हो सके वो हाथ नहीं रहे जो बचाते थे आफताब को बुझ जाने से
बहुत दूर चले गये हैं वो मेरी छुअन से
कैसे मनाऊं अब उन्हें रूठ जाने से।
कैसे बचाये हम खुद को बिखर जाने
से अब तो डर सा लगता है अपने आशियाने से