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Saturday, February 27, 2010

अहो भाग्य!

अहो भाग्य!
आंखों में आंसुओं का सैलाब है
सीने में मौजूद हैं बेहिसाब दर्द
कैसे करूं मैं अपने गम को बयां
लोग रोने भी नहीं देते
कहते हैं तुम्हारा भाग्य अच्छा था
जब अंतिम सांस ली तुम्हारे पिता ने
तो तुम उनके साथ थी
तुम उनके बहुत पास थी
मगर मन में
कुछ न कर पाने की कसक लिए हुए
अपने पिता को तड़पते हुए देखना
क्या मेरा अहो भाग्य था!

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