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Saturday, May 20, 2017

ओशो वचन

तुम किसी स्त्री को निर्वस्त्र कर सकते हो, नग्न नहीं। और जब तुम निर्वस्त्र कर लोगे तब स्त्री और भी गहन वस्त्रों में छिप जाती है। उसका सारा सौंदर्य तिरोहित हो जाता है; उसका सारा रहस्य कहीं गहन गुहा में छिप जाता है। तुम उसके शरीर के साथ बलात्कार कर सकते हो, उसकी आत्मा के साथ नहीं। और शरीर के साथ बलात्कार तो ऐसे है जैसे लाश के साथ कोई बलात्कार कर रहा हो। स्त्री वहां मौजूद नहीं है। तुम उसके कुंआरेपन को तोड़ भी नहीं सकते, क्योंकि कुंआरापन बड़ी गहरी बात है।
लाओत्से वैज्ञानिक की तरह जीवन के पास नहीं गया निरीक्षण करने। उसने प्रयोगशाला की टेबल पर जीवन को फैला कर नहीं रखा है। और न ही जीवन का डिसेक्शन किया है, न जीवन को खंड-खंड किया है। जीवन को तोड़ा नहीं है। क्योंकि तोड़ना तो दुराग्रह है; तोड़ना तो दुर्योधन हो जाना है। द्रौपदी नग्न होती रही है अर्जुन के सामने। अचानक दुर्योधन के सामने बात खतम हो गई; चीर को बढ़ा देने की प्रार्थना उठ आई। वैज्ञानिक पहुंचता है दुर्योधन की तरह प्रकृति की द्रौपदी के पास; और लाओत्से पहुंचता है अर्जुन की तरह--प्रेमातुर; आक्रामक नहीं, आकांक्षी; प्रतीक्षा करने को राजी, धैर्य से, प्रार्थना भरा हुआ। लेकिन द्रौपदी की जब मर्जी हो, जब उसके भीतर भी ऐसा ही भाव आ जाए कि वह खुलना चाहे और प्रकट होना चाहे, और किसी के सामने अपने हृदय के सब द्वार खोल देना चाहे।
तो जो रहस्य लाओत्से ने जाना है वह बड़े से बड़ा वैज्ञानिक भी नहीं जान पाता। क्योंकि जानने का ढंग ही अलग है। लाओत्से का ढंग शुद्ध धर्म का ढंग है। धर्म यानी प्रेम। धर्म यानी अनाक्रमण। धर्म यानी प्रतीक्षा। और धीरे-धीरे राजी करना है। धर्म एक तरह की कोघटग है। जैसे तुम किसी स्त्री के प्रेम में पड़ते हो, उसे धीरे-धीरे राजी करते हो। हमला नहीं कर देते।

ताओ उपनिषद भाग # 6 ,
प्रवचन # 121                                         ओशो

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